विश्व हिन्दू परिषद – सेवा विभाग

विश्व हिन्दू परिषद की मूल प्रकृति सेवा है। सन् 1964 में इसकी स्थापना के पश्चात् शनैः शनैः अपने समाज के प्रति स्वाभाविक प्रेम तथा आत्मीयता के आधार पर विविध प्रकार के सेवा कार्यों का क्रमिक विकास किया गया।
‘‘संसार का सम्बन्ध ‘ऋणानुबन्ध’ है। इस ऋणानुबन्ध से मुक्त होने का उपाय है – सबकी सेवा करना और किसी से कुछ न चाहना।’’
‘‘मनुष्य शरीर अपने सुख-भोग के लिये नहीं मिला, प्रत्युत सेवा करने के लिये, दूसरों को सुख देने के लिये मिला है।’’

‘‘सेवा परमो धर्मः’’

इत्यादि अवधारणाओं के आधार पर परिषद द्वारा यह सम्पूर्ण सेवा कार्य समर्पित कार्यकर्ताओं के द्वारा अत्यल्प संसाधनों के बल पर संचालित है। समूचे भारतवर्ष में सेवा कार्यों का विस्तार है।

उद्देश्य :

परिषद द्वारा सेवा गतिविधियों का संचालन निश्चित उद्देश्य के अंतर्गत किया जाता है –
1. देश के सभी भू-भागों, विशेषकर जनजातीय क्षेत्रों में धर्मांतरण रोकना तथा परावर्तन को प्रोत्साहन देना।
2. सामाजिक समरसता के भाव को परिपुष्ट करना।
3. अशिक्षित, पिछड़े अथवा साधनहीन समाज बांधवों का स्वाभिमान जगाते हुए उन्हें स्वावलम्बी एवं जागरूक बनाना तथा।
4. जिनकी सेवा की जाती है, धीरे-धीरे वे स्वयं सेवाकार्य करने वाले बनें, यह वातावरण बनाना।
सर्वप्रथम सन् 1967 में महाराष्ट्र-गुजरात की सीमा पर (मुंबई से गुजरात की ओर 150 किमी. दूरी पर) स्थित गांव ’तलासरी‘ में जनजातीय छात्रों के लिये एक आश्रमशाला प्रारम्भ की गयी। इसके लिये कल्याण, जिला ठाणे, महाराष्ट्र के तत्कालीन नगराध्यक्ष माधवराव जी काणे ने अपने पद से त्याग पत्र देकर तलासरी जाना तय किया। 40 वर्ष की आयु में राजकीय सेवा से सन्यास लेना, कल्याण जैसा शहर छोड़कर, तलासरी जैसे छोटे गांव में आना, प्रसिद्धि का क्षेत्र छोड़कर सेवा कार्य को अपनाना, अनुकूल क्षेत्र छोड़कर, प्रतिकूल क्षेत्र में आना यह सब बातें श्री माधवराव जी की विशेषता तथा महानता बताती हैं। वर्तमान सांसद तथा अपने पुराने ज्येष्ठ छात्र श्री चिंतामण वनगा कहते है, ‘‘कि मंदिर के शिखर से उतरकर नींव का पत्थर बनना जैसी असाधारण बात माधवराव जी ने की थी।’’
इसी क्रम में दूसरा छात्रावास सन् 1972 में असम राज्य के डिमाहसाओ जिले के हाफलांग में आरम्भ हुआ। उस समय यातायात संबंधी कठिनाइयों के साथ-साथ असम के जनजातीय विस्तार में प्रवेष करना अत्यंत ही कठिन था। किन्तु बलिया, उत्तर प्रदेश से वहां भेजे गये श्री रामानंद शर्मा ने जनजातीय बालकों की शिक्षा का आधार लेकर 5 बालकों से एक छात्रावास आरम्भ किया। समर्पित कार्यकर्ता श्री रामानंद शर्मा की एकनिष्ठ साधना, परिश्रम तथा सेवाभाव के फलस्वरूप वह छोटा सा पौधा आज बालक एवं बालिकाओं के अलग-अलग छात्रावास तथा 600 विद्यार्थियों के विद्यालय के रूप में विशाल वट वृक्ष बनकर शिक्षा के क्षेत्र में यश प्राप्त कर रहा है। इस प्रकल्प का सम्पर्क प्रभाव 100 से अधिक बस्तियों में हजारों छात्रों एवं अभिभावकों तक व्याप्त हुआ है। यहां के पूर्व छात्रों में प्राध्यापक, अधिवक्ता, जनप्रतिनिधि तथा अन्य शासकीय सेवाओं में व्यवस्थित होकर समाज की सेवा कर रहे हैं।
शिक्षा
कालान्तर में स्थान-स्थान की आवश्यकता तथा कार्यकर्ता उपलब्धता के आधार पर देशभर में सेवा प्रकल्पों का विस्तार होता गया। वर्तमान में सम्पूर्ण देश में शैक्षिक कार्यों की दृष्टि से 101 छात्रावास, 639 विद्यालय, 200 बालवाड़ियां, 235 बाल संस्कार केन्द्र, 242 अन्य शिक्षण केन्द्र तथा 240 संस्कार शालाएं संचालित हैं।
स्वाथ्य
समाज में व्याप्त कुपोषण, मौसमी व्याधियों के निवारण एवं ग्रामीण तथा वनांचल में चिकित्सा सुविधाओं के अभाव की पूर्ति के दृष्टि से इस दिशा में कार्य आरम्भ हुआ। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के उद्देश्य से वर्तमान में 13 अस्पताल, 64 डिस्पेन्सरी, 11 मोबाइल डिस्पेन्सरी, 34 एम्बूलेंस एवं 1531 अन्य चिकित्सा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रकल्प संचालित हैं।
समाज कल्याण
सामाजिक एवं आर्थिक समुत्थान के लिये विश्व हिन्दू परिषद के द्वारा सम्पूर्ण देश में 32 बाल कल्याण केन्द्र, 4 महिला सहायता केन्द्र, 19 निःशुल्क भोजन वितरण केन्द्र, 93 वृद्धाश्रम तथा 24 अन्य सामाजिक कार्य संचालित हैं। आर्थिक क्षेत्र में 111 सिलाई केन्द्र, 60 कम्प्यूटर केन्द्र, 160 महिला स्वयं सहायता केन्द्र तथा 14 अन्य कार्य चल रहे हैं। यह सुखद है कि जहाँ - जहाँ विगत कुछ वर्षों से परिषद के द्वारा छात्रावास, विद्यालय तथा अन्य सेवा गतिविधियां संचालित हैं, वहां - वहां प्रायः धर्मांतरण रुका है, समाज-जागरण हुआ है, कार्यकर्ता निर्मित हुए हैं तथा स्वावलम्बन की दिशा में स्वरोजगार आदि की उपलब्धि हुयी है।
विगत 57 वर्षों में लगभग ५०० जिलों में ४,५०० केन्द्रों तक कार्य का विस्तार हुआ। कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से कोहिमा तक सेवाकार्यों का संचालन किया जा रहा है। विश्व हिन्दू परिषद द्वारा अगले तीन वर्षों में देशभर में भौगोतिक दृष्टि से 41 प्रांतों में लगभग 1000 जिलों में सेवा कार्यों का विस्तार करने की योजना है। प्राकृतिक आपदाएं भी एक ऐसा कारक है जिसे विशाल भौगोलिक विविधता वाले विशाल देश के कारण लगभग हर साल झेलना पड़ता है। बाढ़, चक्रवात, सूखा, भूकंप, महामारी आदि लगभग हर साल आते हैं। असम, उत्तर बिहार व बंगाल में बाढ़ का खतरा है और इसी तरह, पूर्वी समुद्र तट, विशेष रूप से बंगाल, ओडिशा और आंध्र के साथ-साथ पश्चिमी तट भी चक्रवात के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं। अब जलवायु तेजी से बदल रही है। राजस्थान, एक सूखा क्षेत्र, अब बाढ़ का भी सामना कर रहा है। विश्व हिन्दू परिषद इस तरह की आपदाओं के दौरान राहत और बचाव कार्य करता है। भोजन, पानी, बच्चों के लिए दूध, तिरपाल, चिकित्सा सहायता, सौर लालटेन, आदि की आवश्यकता होने पर तत्काल व्यवस्था की जाती है और वितरित की जाती है। कोरोना महामारी के समय में भारत के लगभग हर जिले में बड़े पैमाने पर समाज की सेवा की गयी है। 1.87 लाख लोगों को टीका, 50,000 लोगों में औषधि वितरण, 2.15 लाख लोगों में भोजन वितरण, 27,000 परिवारो में राशन वितरण, 7.50 लाख लोगों में काढ़ा वितरण, 10.000 यूनिट रक्तदान, 3.300 मृतकों का अंतिम संस्कार इत्यादि सेवा कार्यों में 375 जिलों के 1700 प्रखंडों के 3141 स्थानों पर 13747 कार्यकर्ताओं ने सेवा की। 40 स्थानों पर योगा, ध्यान, जागरूकता अभियान आदि कार्यक्रम किये गए।
सेवा विभाग के अतिरिक्त अन्य आयामों के द्वारा भी सेवा के कार्य किये जाते है। कोरोना के कारण अनेक चलनेवाले सेवा केंद्र अभी तक शुरू नहीं किये जा सके हैं। विश्व हिन्दू परिषद द्वारा संचालित कुल सेवा कार्य की वर्तमान स्थिति इस प्रकार है :-
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